How to Choose Right Land
स्पर्श के आधार पर भूमि का चयन 1. जिस भूमि को स्पर्श करने पर ग्रीष्मऋतु में ठंडी एंव ठंड की ऋतु में गर्म तथा वर्षाऋतु
स्पर्श के आधार पर भूमि का चयन 1. जिस भूमि को स्पर्श करने पर ग्रीष्मऋतु में ठंडी एंव ठंड की ऋतु में गर्म तथा वर्षाऋतु
भूमि चयन भूमि खरीदने से पहले यह देखना होगा की भूमि किस प्रयोग के लिए खरीदी जा रही है। गृह-निर्माण, मंदिर निर्माण, अस्पताल, स्कूल, तालाब
भूमि के लक्षण दक्षिण, पश्चिम, नैऋत्य और वायव्य में ऊँची भूमि को गजपृष्ठ भूमि कहते हैं। इस पर निवास करने से लक्ष्मीलाभ एवं आयुवृद्धि होती
पशु–पक्षियों के निवास की फल जिस भूमि पर काक एवं कबूतरों का निरन्तर निवास रहता हो, उस भूमि पर मन्दिर एवं भवन बनाने से रोग,
None Leaving Lands : जिस भूमि के समीप श्मशान या कब्रिस्तान हो, तथा जहाँ पशुओं की बलि दी जाती रही हो, वह भूमि निकृष्ट कही
व्यावसायिक वास्तु ब्रह्माण्डीय ऊर्जा व पंचमहाभूतो का ताल मेल बनाते हुए नियमों को लागू करना चाहिए। व्यावसायिक वास्तु के लिए भूमि को परीक्षा, मिट्टी की
औद्योगिक वास्तु उद्योगों को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। घरेलू उद्योग लघू उद्योग भारीउद्योग। औद्योगिक वास्तु में भी वास्तु के मूलभूत सिद्धान्त वही
वार रविवार– संगीत, वाद्यशिक्षा, स्वास्थ्य विचार, औषधि सेवन, प्रशासनिककार्य, मोटर या भान सवारी, नौकरी, पशुक्रय करना, हवन, मंत्र, उपदेश, दिक्षा, शिक्षा, न्यायिक परामर्श, प्रशासनिक निर्णय
भूमि की आकृतियाँ वर्गाकार– इस आकार की भूमि को सर्वश्रेष्ट माना गया है। यह भूमि हमें सुख, समृद्धी, वैभव, एवं मानसिक शांती देती है। क्योंकि
भूमि ढलान– जो भूमि अन्यसभी जगहों से ऊँची होकर ईशान की ओर ढलान होता है। वह भूमि सर्वश्रेष्ट होती है। यदि ढलान पूर्व की ओर
विभिन्न दिशाओं में कोनों के बड़े या घटने से परिणाम निकलते है। आग्नेय कोण का घटना या बढ़ना– आग्नेय कोण बड़ा हुआ है तो यह
भूमि के आस–पास का वातावरण– भूमि के दक्षिण एवं पश्चिम भाग की तरफ खड्ड़ा, या पानी का तालाब नही होना चाहिए। भूमि के पूर्व दिशा
रंगों का महत्व पीला– बुद्धि बढाता है, गटीया रोग मे लाभदायक हरा– शान्त प्रकृति, गर्मी को कम करता है। क्षयरोग कम करता है। लाल– उत्तेजना
सौभाग्य सुचक मुख्यद्वार शुभ पदो मे स्थापित किया गया मुख्य तार परिवार के लिए सुख-सम्बन्धी खुशहाली प्रदान करता है। जो प्राणीक ऊर्जा हमारे सौभाग्य के
पूजा एवं दान आदि जिस दिशा में दोष है उस दिशा में पूजा करें ईशान कोण दूषित होने पर उस कोने में गुरूयन्त्र स्थापित करें
दिशादोष व उनके परिणाम पूर्व दिशा – दरिद्रताए अस्वस्थताए पुत्र, पुत्रीयों सम्बन्धित प्रोब्लम आग्नेयकोण – बच्चो व स्त्रीयों को प्रभावित करता है। स्त्रीयों सम्बन्धित प्रोब्लम
रुद्राक्ष रुद्राक्ष का महत्व हमारे शास्त्रों में उल्लेखित हैं। ये कितना मुखी होगा तो किस तरह फायदा दे सकता है, इस बारे में बताया जा
पंचमहाभूत यदि उस भवन में भी अग्नि, भूमि, जल, वायु और आकाश तत्वों का सही ताल मेल रखा जाए तो वहाँ रहने वाली प्राणी शारीरिक,
फेंग शुई के उपाय फेंग शुई चीन की वास्तुकला है, जिसका शाब्दिक अर्थ है हवा और पानी। हवा और पानी का सही संतुलन ही फेंग
वास्तु शास्त्र का महत्व एवं उपयोगिता हमारी प्रकृति में अनन्त शक्तियाँ हैं, जिससे सृष्टि, विकास और प्रलय की प्रक्रिया चलती रहती है। वास्तु शास्त्र में
गृहभवन, उच्च प्रासाद, दुर्ग-गांव, नगर, मंदिर-देवालय, कूप, तालाब, वापी, मूर्ति निर्माण, स्थापत्य कला, विभिन्न प्रकार के मण्डप, यज्ञ-शालाएं, सभागृह, शिविका, रथ, विभिन्न प्रकार के यान
राशियों का विस्तृत स्वरूप मेष– पूर्व निवास, चतुशपद, रात्रीबली लालरंग, बड़ाशरीर, क्षत्रीयवर्ग, पर्वतवास, रजोगुण, अग्नितत्व स्वामी- मंगल वृषभ/वृष– श्वेत रंग, दक्षिणदिशा, लम्बाशरीर, रात्रीबली, ग्रामवासी, वेरमवर्ग,
लेश्या–ध्यान (प्रत्येक मनुष्य के शरीर के चारों ओर एक आभामंडल होता है। उसके रंग भाव-परिवर्तन के साथ बदलते रहते है। भाव और आभामंडल का गहरा
सम्पूर्ण कायोत्सर्ग (कायोत्सर्ग खड़े रहकर, बैठकर और लेटकर तीनों मुद्राओं मे किया जाता है। खड़े रहकर करना उत्तम कायोत्सर्ग, बैठकर करना मध्यम कायोत्सर्ग और लेटकर