भारतीय ज्योतिष शास्त्र की नींव हजारों वर्षों पुरानी है।
ऋषि-मुनियों ने ग्रहों, नक्षत्रों और मानव जीवन के बीच के संबंध को समझने के लिए कई प्राचीन ग्रंथ (Astrological Scriptures) की रचना की।
ये ग्रंथ आज भी ज्योतिष के विद्यार्थियों और विद्वानों के लिए मार्गदर्शक हैं।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे —
प्रमुख ग्रंथ कौन-कौन से हैं,
उनके लेखक कौन हैं,
और उनमें क्या सिद्धांत बताए गए हैं।
यह सबसे महत्वपूर्ण और प्रामाणिक ज्योतिष ग्रंथों में से एक है, जिसकी रचना महर्षि पराशर ने की थी।
इसे वेदांग ज्योतिष का आधार कहा जाता है।
मुख्य विशेषताएँ:
जन्म कुंडली, दशा प्रणाली और भाव विश्लेषण का विस्तृत वर्णन।
विंशोत्तरी दशा प्रणाली की व्याख्या।
ग्रहों के प्रभाव, दृष्टि और योगों का गहन विवरण।
कर्मफल और भविष्यवाणी के सिद्धांतों की आधारशिला।
📜 यह ग्रंथ “ज्योतिष बाइबल” के नाम से प्रसिद्ध है।
लेखक: मंतरेश्वर
यह ग्रंथ व्यावहारिक ज्योतिष के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। इसमें कुंडली के बारहों भाव, ग्रहों की स्थिति, और योगों का स्पष्ट व सरल विश्लेषण किया गया है।
मुख्य सिद्धांत:
ग्रहों के शुभ-अशुभ फल की गणना।
विवाह, संतान, धन और आयु से जुड़े परिणाम।
योगफल, राजयोग, धनयोग और विपरीत राजयोग की जानकारी।
📘 फलदीपिका को कुंडली के फलादेश के लिए सबसे उपयोगी ग्रंथ माना जाता है।
लेखक: वैद्यनाथ दीक्षित
यह ग्रंथ बारह अध्यायों में विभाजित है और प्रत्येक अध्याय में जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गई है।
प्रमुख विषय:
ग्रहों की दशा और अंतरदशा का विश्लेषण
लग्न और भावों के अनुसार जीवन के परिणाम
विवाह, शिक्षा, रोग, मृत्यु, भाग्य आदि का विश्लेषण
📗 जातक पारिजात को “भविष्यवाणी का व्यावहारिक ग्रंथ” माना जाता है।
लेखक: कल्याण वर्मा
यह ग्रंथ ज्योतिषीय योगों, ग्रहों के प्रभावों और जीवन पर उनके परिणामों का विस्तृत विवेचन करता है।
मुख्य विशेषताएँ:
ग्रह स्थिति के अनुसार व्यक्तित्व और व्यवहार का अध्ययन।
योगों (राजयोग, दरिद्र योग, चंद्र-मंगल योग आदि) की व्याख्या।
लग्नेश और ग्रहों के परस्पर संबंधों से फलादेश निकालने की पद्धति।
📙 सारावली को कुंडली विश्लेषण के लिए एक उत्कृष्ट मार्गदर्शक माना जाता है।
मूलस्थान: दक्षिण भारत
मुख्य ग्रंथ: अगस्ती नाड़ी, शुक्र नाड़ी, भृगु नाड़ी
नाड़ी ज्योतिष एक विशेष प्रकार की भविष्यवाणी प्रणाली है, जिसमें जन्म समय के आधार पर नहीं बल्कि अंगुलियों की रेखाओं और ग्रह-स्थिति के संयोजन से फल बताया जाता है।
मुख्य सिद्धांत:
हर व्यक्ति का भविष्य ताड़पत्रों पर पहले से लिखा हुआ माना जाता है।
प्रश्न पूछने के समय की ग्रह स्थिति के आधार पर फलादेश किया जाता है।
यह विधा अत्यंत सूक्ष्म और रहस्यमयी है।
📖 नाड़ी ज्योतिष को “दैवीय रहस्य” कहा जाता है, क्योंकि इसमें अद्भुत सटीकता पाई जाती है।
प्राचीन ज्योतिष ग्रंथ न केवल ज्योतिषीय ज्ञान का खज़ाना हैं, बल्कि वे जीवन के दर्शन और कर्मफल के सिद्धांतों को भी स्पष्ट करते हैं।
इन ग्रंथों की सहायता से आज भी ज्योतिषाचार्य व्यक्ति के जीवन का गहन विश्लेषण कर सकते हैं।
महर्षि पराशर से लेकर नाड़ी ज्योतिष तक — ये सभी ग्रंथ भारतीय ज्ञान परंपरा की अनुपम धरोहर हैं।
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